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मातृत्व, कर्तृत्व और नेतृत्व का अनूठा संगम आद्य प्रमुख संचालिका वंदनीय मौसी जी लक्ष्मी बाई केलकर

लक्ष्मी बाई केलकर

चिंतनशील व्यक्तित्व एवम् दूरदर्शी विचारधारा का ही परिणाम था कि उन्होंने लाखो महिलाओं को संगठन का महामंत्र दिया

रायपुर: भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से अनेकों माताओं बहनों ने इस पवित्र पुण्य यज्ञ में अपनी आपनी आहुतियां दी है। ऐसा ही एक तेजस्वी व्यक्तित्व मनः पटल पर उभरता हैं, मातृत्व, कर्तृत्व और नेतृत्व का अनूठा संगम भारत की सबसे बड़ी  महिला संगठन राष्ट्र सेविका समिति की  आद्य प्रमुख संचालिका वंदनीय मौसी जी लक्ष्मी बाई केलकर का। जिन्होंने न केवल स्वाधीनता संग्राम में ही बल्कि उसके बाद भी महिलाओं में आत्म सम्मान, आत्म निर्भरता,आत्म रक्षा, आत्म विश्वास के साथ स्वराष्ट्र तथा स्वधर्म के लिए संघर्ष की प्रेरणा दी।

आषाढ़ शुक्ल दशमी 1827 शके, 5 जुलाई 1905 को श्री कमल भास्कर दाते जी के घर जन्मी नन्ही कमल, एक सुसंकृत परिवार में धर्म तथा कर्म की भरपूर शिक्षा  प्राप्त की। कम उम्र में ही उनका विवाह विधुर पुरुषोत्तम राव से हो गया। अब वे लक्ष्मी बाई केलकर के नाम से जानी जाने लगी। पुरुषोत्तम राव की पहली पत्नी से 2 बेटियां थीं जिनका पालन पोषण,पति सेवा करते हुए वे मात्र 31 वर्ष की आयु में पति के निधन हो जाने पर विधवा होने का दंश झेला।

कौन जानता था कि ऐसी चुनौती भरे जीवन को नकारते हुए एक ऐसा आलौकिक व्यक्तित्व अस्तित्व में आएगा जो राष्ट्र सेविका समिति की आद्य प्रमुख संचालिका वंदनीय मौसी के रूप में एक ऐसा संगठन जो राष्ट्र के लिए स्वयं प्रेरणा से प्रेरित बहनों का,सेविकाओं का न केवल भारत में अपितु समग्र विश्व में स्त्रियों में जीवन की नई प्रेरणा,उमंग, आशा, विश्वास,धर्म तथा राष्ट्रभक्ति के भाव से सुगन्धित कर, विश्व व्यापी नारी संगठन के रूप में सम्मान की दृष्टि से देखा जाएगा। 

वंदनीय मौसी जी का चिंतनशील व्यक्तित्व एवम् दूरदर्शी विचारधारा का ही परिणाम था कि उन्होंने लाखो महिलाओं को संगठन का महामंत्र दिया। मातृशक्ति को राष्ट्र कार्य के लिए प्रेरित कर ऐसा विश्व व्यापी नारी संगठन को साकार रूप प्रदान किया। अपने स्वयं के विचारो से ध्येय तोरण के रंग भर के संगठन का चौखट स्वयं तैयार किया। सांसारिक दायित्व,राष्ट्र चिंतन के साथ साथ उनका मन धर्म तथा आध्यात्म में भी रमा रहता था। वंदनीय मौसी जी महिलाओं के साथ रामायण पाठ किया करती थी तथा युवा पीढ़यों तक रामायण , महाभारत के प्रेरक प्रसंगों को तत्कालीन परिस्थतियों से जोड़ कर प्रवचनों के माध्यम से पहुंचाया करती थीं। वे कहा करती थीं कि जिस घर में माता सीता रहती है, राम जी स्वयं वहां चले आते हैं, माता सीता से ही प्रभु श्री राम की संपूर्णता है।

वंदनीय मौसी जी धर्मो रक्षति रक्षितः के विचार पर विश्वास रखती थीं, वे कहती थीं धर्म कितना भी अच्छा क्यों न हो, रक्षण के बिना व्यवहारिक क्षेत्र में नहीं टिक सकता। इसलिए हमें धर्म परायण तथा धर्म का अनुयायी होना चाहिए। वंदनीय मौसी जी राष्ट्र चिंतन में डूबी रहती थीं। सुशीला, सुधीरा के साथ स्त्री समर्थ भी हों ऐसे स्वामी विवेकानंद जी के विचार उनके मन में अंकित थे कि जिस तरह गरूड़ पक्षी अपने उड़ान भरता है तो उसके दोनों पंख सामर्थ्य शाली होने चाहिए ।ठीक वैसे ही स्त्री राष्ट्र का हिस्सा है और राष्ट्र को सामर्थ्यवान तथा सक्षम बनाने के लिए स्त्री को भी समर्थ तथा सक्षम होना चाहिए। 

और उनका यह चिंतन सार्थक हुआ जब उन्होने 1936 विजयादशमी के  परम पावन दिन राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना की। वंदनीय मौसी जी का कैसा अचल अडिग आत्म विश्वास रहा होगा, जो उन्होंने राष्ट्र की स्त्रियों में इस संकल्प दीप को न केवल प्रज्वलित किया बल्कि निरन्तर जगाए रखा। उन्होंने आत्म रक्षा जैसे विषय पर जहां नारियों को अबला समझा जाता रहा है, आत्म रक्षण के शारीरिक प्रशिंक्षण को समिति के शिक्षण वर्गो में समावेश किया। स्त्रियों के स्वास्थ्य तथा योगासन के महत्व को जानकर स्वयं योगासन सीख कर समिति के वर्गो में इसका समावेश किया।

वंदनीय मौसी जी का कैसा साहसी व्यक्तित्व रहा होगा, जो  13 अगस्त 1947 को जब भारत पाकिस्तान का औपचारिक बंटवारा होने के मात्र एक दिन शेष था। तब पकिस्तान जा कर न केवल स्वयं के साहस का परिचय दिया बल्कि वहां रह रही हिन्दू बहनों का हौसला बढाया और 1200 सेविकाओं की एक सभा करके उनमें हिम्मत जगाई, उनके सुरक्षित भारत पहुंचने की योजना बनाई। इस प्रकार अपने संकल्प से उन्होंने असम्भव कहे जाने वाले कार्यों को साकार कर दिखाया। वंदनीय मौसी जी के जन्मदिवस को राष्ट्र सेविका समिति की सेविकाएं संकल्प दिवस के रूप में मनाती है। वर्ष भर के लिए अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार, व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से संकल्प ले कर पूरे निष्ठा से पूर्ण करती है।

।। मातृत्व नेतृत्व और कर्तृत्व का अनूठा संगम थी वंदनीय मौसी जी लक्ष्मी बाई केलकर।।

आज उनके द्वारा स्थापित संगठन राष्ट्र सेविका समिति द्वारा महिलाओं के नैसर्गिक गुणों का संवर्धन और शक्ति के अपार पुंज को सफतापूर्वक अनवरत जागृत रखा जा रहा है। 
समिति देश, विदेश, ग्राम, शहर, कस्बों में साप्ताहिक तथा दैनिक अंतराल में शाखा लगाती है। इन शाखाओं में सेविकाओं के शारीरिक, बौद्धिक, आत्मरक्षा, मनोबल आदि के लिए उपक्रम किए जाते हैं।
समिति प्रत्येक वर्ष अपने सूत्र स्त्री राष्ट्र की आधार शिला है  के साथ शिविरों का आयोजन बालिकाओं तथा गृहणी सेविकाओं के लिए अलग अलग स्तरों पर करते है। साथ ही आरोग्य शिविरों, उद्योग मंदिरो, बाल मंदिरो एवम् संस्कार वर्ग1 सहित सेवा कार्य करते हैं।

आज राष्ट्र सेविका समिति अपने ध्येय वाक्य तेजस्वी हिन्दू राष्ट्र के पुनर्निर्माण की ओर अग्रसर भारत का सबसे बड़ा महिला संगठन है। समिति महिला छात्रावासो, निःशुल्क चिकित्सा केंद्रो, लघु उद्योगों से जुड़े स्वयं सहायता समूहों, साहित्य केंद्रो एवम् संस्कार केंद्रो, गरीब बालिकाओं के लिए निःशुल्क ट्यूशन आदि संचालित करती है, अनेक शिक्षण, स्वास्थ्य तथा स्वावलंबन संस्थान चला कर विशेष रूप से समाज के पिछड़े तथा वनवासी क्षेत्रों में सराहनीय कार्य कर रही है।

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की अनाथ बालिकाओं के लिए निःशुल्क छात्रावास और पड़ाई की व्यवस्था भी व्यापक स्तर पर की जा रही है।
यह सब उस परम तेजस्वी, दृढ़ संकल्पित पुण्यात्मा की ही प्रेरणा से संपन्न हो रहा है, जो वात्सल्य की प्रतिमूर्ति स्वरूप सबकी मां सी बन गईं वंदनीय मौसी जी।

यया राम यशोगानै: कृता भारत जागृति:।
लक्ष्मी केलकरोपाख्याम स्मरामो मवाशी वयं ।।

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