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Sawan Jhoola : सावन में महिलाएं क्यों झूलती है झूला, आइए जानें इसकी परपंरा और मान्यताएं...

Sawan Jhoola

जहां महिलाएं सहेलियों के साथ झूले पर झूलते हुए लोकगीत गाती हैं और इस मौसम का आनंद उठाती हैं।

Sawan Jhoola : डेस्क न्यूज। सावन का महीना सिर्फ बारिश और हरियाली का समय नहीं, बल्कि यह एक ऐसा उत्सव है जो प्रकृति, भक्ति और लोक परंपराओं को एक साथ जोड़ता है। इस महीने में महिलाओं द्वारा झूला झूलने की परंपरा न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि इसके पीछे गहरे सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक कारण भी छिपे हैं। सावन 2025 में यह परंपरा एक बार फिर गांवों और शहरों में उत्साह के साथ देखी जा रही है, जहां महिलाएं सहेलियों के साथ झूले पर झूलते हुए लोकगीत गाती हैं और इस मौसम का आनंद उठाती हैं। तो आइए, जानते हैं कि सावन में झूला झूलने की यह परंपरा क्यों खास है और इसके पीछे क्या मान्यताएं हैं।


प्रकृति के साथ तालमेल का उत्सव-

सावन का महीना मानसून की ताजगी और हरियाली का प्रतीक है। इस समय खेत-खलिहान हरे-भरे हो जाते हैं और पेड़ों की डालियां झूलों के लिए आदर्श बन जाती हैं। महिलाएं पेड़ों पर रस्सियों के झूले बांधकर, ठंडी हवाओं के बीच झूलती हैं और लोकगीतों के साथ प्रकृति के इस उत्सव में शामिल होती हैं। यह परंपरा न केवल मन को सुकून देती है, बल्कि प्रकृति के साथ गहरा जुड़ाव भी स्थापित करती है। सावन की फिजा में झूला झूलना एक तरह से प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का तरीका है।


महिलाओं के लिए सामाजिक मेलजोल का अवसर-

पारंपरिक भारतीय समाज में महिलाएं अक्सर घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्त रहती थीं। सावन का महीना उन्हें अपने लिए समय निकालने और सहेलियों के साथ मेलजोल का मौका देता है। झूला झूलते समय महिलाएं एक साथ इकट्ठा होती हैं, सजती-संवरती हैं और हंसी-ठिठोली के साथ लोकगीत गाती हैं। यह सामूहिक गतिविधि न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि सामाजिक बंधनों को मजबूत करने और तनावमुक्त होने का एक अनूठा अवसर भी प्रदान करती है।


धार्मिक और पौराणिक महत्व-

सावन का महीना भगवान शिव और माता पार्वती से गहराई से जुड़ा है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस महीने में माता पार्वती अपने मायके आती हैं, और उनकी सखियां उन्हें झूला झुलाती हैं। इस परंपरा को आज भी महिलाएं निभाती हैं, जो इसे माता पार्वती के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक मानती हैं। झूले पर गाए जाने वाले लोकगीतों में शिव-पार्वती और राधा-कृष्ण के प्रेम की कहानियां अक्सर सुनाई देती हैं, जो इस परंपरा को और भी पवित्र बनाती हैं।


शारीरिक और मानसिक सुकून की प्राकृतिक थेरेपी-

झूला झूलना केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक प्राकृतिक थेरेपी की तरह भी काम करता है। बारिश के मौसम में जब लोग घरों में ज्यादा समय बिताते हैं, तब खुले वातावरण में झूला झूलने से शारीरिक थकान दूर होती है और मन हल्का महसूस करता है। यह गतिविधि तनाव कम करने और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी मदद करती है। सावन की ठंडी हवाओं और हरियाली के बीच झूला झूलना एक ताजगी भरा अनुभव देता है।


लोकगीतों के साथ सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण-

सावन में झूलों के साथ गाए जाने वाले लोकगीत भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर हैं। ये गीत पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे हैं और सावन के महीने में महिलाओं के बीच नई ऊर्जा का संचार करते हैं। इन गीतों में प्रेम, प्रकृति, भक्ति और सामाजिक मूल्यों की झलक मिलती है, जो इस परंपरा को और भी समृद्ध बनाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी महिलाएं ‘कजरी’ और ‘सावन के गीत’ गाते हुए झूला झूलती हैं, जो सांस्कृतिक निरंतरता को दर्शाता है।

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