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जब कर्जदार बन जाएँ याचिकाकर्ता, वसूली से बचने के लिए कानून का खेल खेल रहे हैं धोखेबाज़

New Delhi

कोर्ट ने इस एफआईआर को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बताते हुए खारिज कर दिया और उधारकर्ता पर जुर्माना भी लगाया।

New Delhi नई दिल्ली। यह एक चिंताजनक चलन बनता जा रहा है कि कर्ज़ नहीं चुकाने वाले कुछ लोग अब न्याय पाने के लिए नहीं, बल्कि कर्ज़ से बचने के लिए न्यायिक व्यवस्था का सहारा लेने लगे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान एक ऐसा ही मामला सामने आया, जहाँ एक उधारकर्ता ने कर्ज़ न चुकाने के बाद उल्टे बैंक के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज करवा दी।


उस व्यक्ति ने बैंक के खिलाफ धोखाधड़ी और विश्वासघात जैसे गंभीर आरोप लगाए, जबकि बैंक ने केवल वैध रूप से कर्ज़ वसूली की प्रक्रिया शुरू की थी। राजपाल सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य मामले में, कोर्ट ने पाया कि उधारकर्ता का मकसद सिर्फ वसूली की प्रक्रिया को रोकना था। कोर्ट ने इस एफआईआर को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बताते हुए खारिज कर दिया और उधारकर्ता पर जुर्माना भी लगाया।


कानूनी सुरक्षा का गलत इस्तेमाल बढ़ रहा है-

यह कोई अकेला मामला नहीं है। देशभर में बैंक और वित्तीय संस्थान इस तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जहाँ कुछ उधारकर्ता उपभोक्ता संरक्षण कानूनों, कानूनी प्रक्रियाओं में देरी और न्यायिक नरमी का फायदा उठाकर जानबूझकर भुगतान से बचते हैं। गलत शिकायतें करना, तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना और वसूली प्रक्रिया के जवाब में पलटकर कानूनी कार्रवाई करना, यह अब आम रणनीति बनती जा रही है, खासकर आदतन या पेशेवर डिफॉल्टर्स के बीच।


आरसीसी इंफ्रावेंचर्स, एक बहु-करोड़ और बहु-बैंक घोटाला-

कोर्ट कार्यवाही के दौरान उस समय सबकी नज़रें उठीं जब हमारे एक संपादक ने यह टिप्पणी दर्ज की कि ऐसे मामलों में माननीय सर्वाेच्च न्यायालय की आमतौर पर यह राय रही है कि इन्हें गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) को भेजा जाना चाहिए, क्योंकि यह एक अत्यधिक राशि की धोखाधड़ी का मामला है और इसके आरोपों की गंभीरता को दर्शाता है।

यह पूरा लोन घोटाला आरसीसी इंफ्रावेंचर्स लिमिटेड और जैन परिवार से जुड़ा है, जिन्होंने 100 करोड़ रुपए से अधिक की धोखाधड़ी को कई बैंकों के साथ अंजाम दिया। एफआईआर संख्या 0295/2024, जो गुरुग्राम के डीएलएफ सेक्टर-29 थाने में दर्ज की गई है, के अनुसार आरसीसी ने एनएच-74 पर एक अधोसंरचना परियोजना के लिए 2018-2019 के दौरान कई बैंकों से ऋण लिए और पहले से रची गई आपराधिक साज़िश के तहत इन सभी ऋणों पर जानबूझकर डिफॉल्ट कर दिया।

100 करोड़ रुपए से अधिक की भारी राशि मिलने के बावजूद कंपनी ने न सिर्फ भुगतान में डिफॉल्ट किया, बल्कि जालसाज़ी, दस्तावेज़ों में हेराफेरी और आपराधिक षड्यंत्र में भी लिप्त पाई गई। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय और उसके बाद सर्वाेच्च न्यायालय ने बार-बार जाँच रोकने के आरोपियों के प्रयासों को खारिज कर दिया।


बार-बार दोहराया गया धोखाधड़ी का पैटर्न, कई बैंकों को बनाया निशाना-

इस मामले को और भी गंभीर बनाता है यह तथ्य कि आरसीसी और उससे जुड़े कुछ व्यक्ति सिर्फ एक ही नहीं, बल्कि कई बैंकों और ऋणदाताओं के साथ इसी तरह की धोखाधड़ी कर चुके हैं। वर्ष 2020 में यस बैंक, 2021 में एचडीएफसी बैंक, 2022 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और 2023 में कोटक महिंद्रा बैंक के साथ साथ दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तराखंड स्थित एक अन्य ऋणदाता के साथ भी यही रणनीति अपनाई गई। दिल्ली के एक ऋणदाता के मामले में, ऋण राशि प्राप्त करने के बाद आरसीसी ने भुगतान में चूक की और फिर धमकी, असहयोग, और झूठेद-बेबुनियाद आपराधिक आरोप लगाकर वसूली की प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास किया

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