डोनाल्ड ट्रम्प का कार्यकाल,दुनिया कैसे और कितनी बदल सकती है, इसका एक आकलन

OPINION BY DURGESH KUMAR DUBEY
क्या सच में अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं बदलने वाली हैं? क्या वैश्विक आदेश (Global Order) में बदलाव आने वाला है? और भारत इसमें कहाँ और कैसे स्थित होगा? इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए चलिए, इस समय के घटनाक्रमों को समझने की कोशिश करते हैं। हाल ही में भारतीय सोशल मीडिया में एक तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमें मुकेश और नीता अम्बानी डोनाल्ड ट्रम्प के साथ नजर आ रहे हैं।
मुकेश अम्बानी, जो रिलायंस समूह के मालिक और भारत के बड़े उद्योगपति हैं, जिनका प्रधानमंत्री मोदी के करीबी लोगों में नाम लिया जाता है, उनकी ट्रम्प से मुलाकात सिर्फ औपचारिकता नहीं हो सकती।
आइए इस तस्वीर और इसके संदर्भ को बेहतर तरीके से समझने की कोशिश करते हैं।
रिलायंस और रूस से समझौता रिलायंस वही कंपनी है, जिसने हाल ही में रूसी तेल कंपनी रोसनेफ्ट के साथ एक बड़ा समझौता किया है। इस समझौते के तहत, रिलायंस अगले दस साल तक हर साल करीब 13 बिलियन डॉलर का तेल खरीदेगा। कहा जा रहा है कि इस तेल का आधा हिस्सा, जो समुद्री मार्ग से सप्लाई किया जाएगा, रिलायंस को मिलेगा।
यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण और बड़ी डील है। लेकिन, दिसंबर 2024 में इस डील के ठीक एक महीने बाद, अम्बानी दंपति ट्रम्प के साथ इस तस्वीर में नजर आए। इसका कोई गहरा मतलब तो होगा ही।
क्या हो सकता है इसका संदेश?
ट्रम्प का दावा है कि वह यूक्रेन में चल रहे संघर्ष को रोक सकते हैं, वहीं दूसरी ओर अम्बानी ने रूस से तेल आपूर्ति के लिए दस साल का समझौता किया है। यह कुछ बड़ा संकेत दे रहा है। हंगरी के नेता विक्टर ओरबन का ट्रम्प और पुतिन के बीच मध्यस्थता की कोशिश, एलन मस्क का जर्मनी में दक्षिणपंथी पार्टी का समर्थन, और रूस से गैस आपूर्ति को फिर से बहाल करने की योजनाएं, ये सभी घटनाएँ एक व्यापक राजनीतिक बदलाव की ओर इशारा करती हैं।
पनामा नहर और ग्रीनलैंड पर रूस का रुख
ट्रम्प ने पनामा नहर पर बढ़ते चीनी प्रभाव को लेकर चिंता जताई, और रूस का इस पर बयान दिलचस्प था। रूस ने इस मुद्दे पर निष्पक्ष सा बयान जारी किया। इसी तरह, ग्रीनलैंड के मुद्दे पर भी रूस ने अमेरिका और डेनमार्क के बीच स्थितियों को लेकर कोई भी विवाद नहीं उठाया और ध्यान रखा कि यह मामला यूरोपीय देशों के साथ है, लेकिन रूस इस पर करीबी नजर बनाए रखेगा।
यूक्रेन संघर्ष और रूस-भारत की बढ़ती साझेदारी
यूक्रेन संघर्ष का सबसे बड़ा पेंच यह है कि रूस ने यूक्रेन की बीस प्रतिशत ज़मीन कब्जा कर ली है, और अब इसे वापस करने का कोई संकेत नहीं है। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि यूक्रेन को अपनी ज़मीन से समझौता करना होगा। बदले में रूस पनामा नहर और ग्रीनलैंड के मामले में अमेरिका के रुख पर कोई आपत्ति नहीं जताएगा।
भारत ने भी इन मुद्दों पर अपनी चुप्पी बनाए रखी है। भारत का रुख दर्शाता है कि वह वैश्विक दृष्टिकोण से संयमित और सूझबूझ वाला रवैया अपनाए हुए है।
उत्तरी कोरिया, ईरान और भारत-रूस का समीकरण
उत्तरी कोरिया और ईरान भी ऐसे देश हैं जो अमेरिका के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। रूस ने उत्तरी कोरिया के साथ अपने प्रभाव को बढ़ाया है और भारत ने भी वहां अपने दूतावास को फिर से शुरू किया है। ईरान के साथ रूस और भारत दोनों के समझौते भी अहम हैं, जो अमेरिकी दबाव से बचने की रणनीति को दर्शाते हैं।
यह सब मिलकर यह संकेत करता है कि चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ रूस, भारत, और अन्य देशों का एक गठबंधन बनता जा रहा है। अमेरिका को भी उत्तरी कोरिया और ईरान से निबटने में रूस और भारत के समर्थन और साथ की आवश्यकता होगी.
अमेरिका और इजराइल की रणनीतियाँ
अमेरिका अब अपने 35 ट्रिलियन डॉलर के कर्ज से उबरने की कोशिश कर रहा है और देश में रोजगार बढ़ाना चाहता है। इजराइल, जो अमेरिका का प्रमुख सहयोगी है, भी युद्ध के बाद अपनी अर्थव्यवस्था को पुनः सुदृढ़ करने की योजना बना रहा है। भारत के बारे में यह परसेप्शन है कि वह चीन के प्रभाव वाले संगठनों जैसे SCO और BRICS में पश्चिमी देशों के खिलाफ कोई गोलबंदी नहीं होने देता, और यही चीन के लिए एक चिंता का कारण है।
ट्रम्प का 'आत्मनिर्भर अमेरिका' मॉडल
चुनावी अभियान के दौरान, ट्रम्प ने चीन और भारत पर टैरिफ लगाने की बात की थी, लेकिन चुनाव जीतने के बाद वह कनाडा और मेक्सिको जैसे पड़ोसी देशों पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि इन देशों से छोटे-मोटे रोजगार अमेरिका में आएं और अमेरिका की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया जा सके।
ब्रिक्स देशों और डॉलर की चुनौती
ब्रिक्स में सबसे बड़ा निर्यातक चीन है, जो अब अपनी मुद्रा (युआन) में अधिक से अधिक व्यापार करने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में, चीन पर निर्भर छोटे-बड़े सभी देश अब यह कह सकते हैं कि वे डॉलर में व्यापार करेंगे नहीं तो अमेरिका से पाबंदियां झेलनी पड़ सकती हैं।
भारत और क्वाड की भूमिका
राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रम्प Administration का पहला अंतर्राष्ट्रीय बैठक क्वाड (India, Japan, Australia) की होगी। भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री पहले ही इस बैठक के लिए अमेरिका पहुंच चुके हैं। इस गठबंधन को चीन के खिलाफ एक व्यापक मोर्चा माना जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में हो रहे इन बदलावों के बीच भारत को अपनी रणनीति और स्थिति को मजबूती से तय करना होगा। ट्रम्प के आंतरिक और वैश्विक दृष्टिकोण के चलते दुनिया में न केवल आर्थिक, बल्कि राजनीतिक परिवर्तनों की नई लहर देखने को मिल सकती है।